Monika garg

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लेखनी कहानी -13-May-2022#नान स्टाप चैलेंज# मुझे साजन के घर जाना है

सालों बाद नीता और पलक की मुलाकात हुई वो भी इत्तेफाक से। दोनो बचपन की सहेलियाँ थीं। एक ही मोहल्ले में आस - पास घर था इसलिए साथ-साथ स्कूल जाना आना होता था।  काॅलेज भी दोनो साथ पढ़े और भावी जीवन के सपने भी साथ देखे।
आज अचानक सरगम माॅल में आमना-सामना हो गया। औपचारिक बातचीत के बाद नीता ने पलक को अपना फोन नंबर और घर का पता देते हुए घर आने का निमंत्रण दिया। पलक जो पूरी तरह व्यवहारिक हो चुकी थी उसने कहा कहीं बाहर मिलते हैं न! क्या घर के अंदर बैठेंगे।वही बोरियत भरा माहौल...
पर नीता ने बड़ी सहजता से उसकी बात काटते हुए उसे अपने घर पर ही आने और उसके हाथों से बने भोजन का आनंद उठाने का न्योता दिया।
पलक के लिए इन्दौर नया शहर था,पर नीता तो शादी के बाद से ही बस यहीं की होकर रह गई थी। पलक अपने काम के सिलसिले में अकेले इंदौर आई थी। फाइफ स्टार होटल में ठहरी थी। उसे नीता के घर जाने में संकोच हो रहा था क्योंकि उसने बताया था कि उसका संयुक्त परिवार है। पर नीता बचपन की साथी थी, इसलिए उसके बारे में जानने की और अपनी सफलताओं के बारे में उसे बताने की बड़ी इच्छा हो रही थी।
नियत समय पर पलक नीता के घर पहुँच चुकी थी। मेन गेट पर मधुमालती की बेल इतरा रही थी और उसके फूलों की खुशबू से मन तरोताजा हो गया।
फिर था छोटा सा गार्डन पर इतना सुसज्जित,हराभरा मानो कोई प्यारा बच्चा अभी अभी नहा धोकर तैयार होकर मुस्कान बिखेर रहा हो। क्यारियाँ फूलों से लदी थीं तितलियाँ मँडरा रही थी। आगे बढ़ते ही शेड के नीचे इनडोर प्लांट्स सुशोभित थे द्वारपाल की तरह तैनात।जो बरबस ही मन मोह रहे थे।जीभरकर देखने के बाद उसने डोर बैल बजाई बड़ी सुरीली मुरली धुन लगा सुनती ही रहे तभी दरवाजा खुला।
खूबसूरत तोरण से सुसज्जित द्वार देख माँ का घर याद आ गया।
दरवाज़ा नीता ने ही खोला था एकदम रिलैक्स मूड में सदाबहार मुस्कान के साथ।
पहनी तो उसने साड़ी ही थी, पर खूबसूरत अंदाज में लहराता आँचल पलक को जाने क्यों उदास कर गया।
घर की स्वच्छता और सजावट देखकर उसे आश्चर्य हो रहा था। हर वस्तु अपनी जगह सलीके से रखी थी। सामान कम और साधारण थे पर खिलखिला रहे थे।
नीता ने उसे हाॅल पर बैठाया वह घर की प्रशंसा कर ही रही थी कि नीता की बिटिया ट्रे में नक्काशीदार गिलास में पानी लेकर आ गई। ढीला ढाला टाॅप और जीन्स पहनी प्यारी सी बिटिया एम.बी.ए.कर रही है यह सुनकर पलक को आश्चर्य हुआ क्योंकि उसने सोचा था कि एक हाउस वाइफ की बेटी पढ़ने की बजाय घरेलू काम ही करती होगी ।
थोड़ी ही देर में एक महिला आई । चेहरे पर अलौकिक तेज, आत्मविश्वास की झलक, सलीके से पहनी गई साड़ी और बेहद खूबसूरत उस महिला के आते ही नीता ने उठकर उनका परिचय कराया और उनके बैठने के बाद खुद बैठी।
के समय। मुझे लगा ही नहीं कि मैं अजनबियों के बीच हूँ।
रानू के आते ही सबसे उसका रिश्ता जुड़ते ही मुझे सब अपने लगने लगे।
रही सही कसर तब पूरी हो गई जब मैं मायके गई रानू के साथ लगभग एक माह के लिए। मैंने देखा मेरी भाभी तो घर की रानी बन चुकी थी अपने व्यवहार से। वो मुझे भी समय देती, जैसे ही काम से फुर्सत मिलती रानू के साथ खेलती,उसकी मालिश कर देती ,नहला-धुला कर तैयार करती।मेरी पसंद का खाना बनाती और तो और मम्मी को मेरे पास ही भेजती रहती सारा काम खुद सम्हालती। सब उनसे खुश रहते। ऐसा लगा भाभी के बिना किसी का काम ही नही चलता।
मैं मौन रहकर उनसे सीख रही थी, जीवन जीने की कला।
योग्यतानुसार जॉब चुनकर अपने को व्यस्त कर लिया। पति और घर उसके लिए गौण थे, मुख्य था उसका काम ।
इस बीच अमन उसकी गोद में आ गया। ससुराल में कुछ दिन रहना हुआ सभी खुश थे पर पलक को उनका साथ पसंद ही नही था । वापस आ गई अपनी दुनिया में,और नन्हे अमन को आया के भरोसे छोड़कर काम शुरू कर दिया ।
जबकि विक्रम चाहता था कि पलक अपना समय अमन की परवरिश पर दे। सास-ससुर ननद देवर सब थे परिवार में पर पलक को इन सबका साथ भीड़ लगता था। इसलिए उसने विक्रम को अलग घर लेकर रहने पर मजबूर कर दिया था। अच्छी सोसायटी में बंगला था, महँगी गाड़ी थी सबकुछ तो था । फिर भी चहकता न था घर। अजीब सी वीरानगी थी।
अमन को भी छठवीं क्लास से बोर्डिंग स्कूल में डालकर पल्ला झाड़ लिया था क्योंकि बच्चा पालना उसे बोझ लग रहा था। लगे भी क्यों न कौन सा उसे अनुभव था परवरिश का।
आज पलक को सबकुछ रीता सा लग रहा था घबराहट हो रही थी मानो सबकुछ हाथ से फिसल गया हो।
न विक्रम का फोन आया था न अमन का। नीता से मिलने से पहले तो उसे खुद किसी का ध्यान न था, पर अचानक अपने ही अस्तित्व में उसे बौनापन नजर आने लगा । उसे बेचैनी महसूस हो रही थी।
तुरंत ही विक्रम को फोन लगाया , दूसरी ओर से आवाज आई "कहिए मैडम सब ठीक तो है न? सोई नहीं अब तक ?"
पलक निःशब्द थी कहते न बना कि उसे विक्रम की याद आ रही है क्योंकि आज तक उसने ऐसा कभी जताया ही नहीं था ।
क्या हुआ, कुछ बोलो ..!
मैं कल आ रही हूँ, वापस ।
हाँ, तुमने बताया था। मुझे याद है भई,आ जाऊँगा तुम्हे लेने बस यही याद दिलाना था?
हँसते हुए कहा विक्रम ने अब सो जाओ, गुड नाइट!
फोन कट गया पर पलक अब भी मोबाइल कान से लगाए थी। आज तो वह बहुत कुछ सुनना चाहती थी जो अनसुना था, बहुत कुछ कहना चाहती थी जो अब तक अनकहा था।उसी रात उसने फैसला कर लिया कि जो हुआ सो हुआ अब समेटना है मुझे मेरे रिश्तों के मोती कितने बिखर गए हैं।
सुबह उठकर पलक बहुत हल्का महसूस कर रही थी। जाने क्या बदल गया एक रात में?सोचने लगी।
आज वह मिसेस विक्रम अवस्थी बनकर घर लौट रही थी। उसने मन ही मन भगवान का धन्यवाद दिया नीता से मिलाने के लिए।
टैक्सी पर विविध भारती में गाना चल रहा था 
"मुझे साजन के घर जाना है।"

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3 Comments

Gunjan Kamal

22-Nov-2022 11:33 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Peehu saini

22-Nov-2022 01:07 AM

Anupam

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Manzar Ansari

21-Nov-2022 07:50 PM

शानदार

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